
इंदौर के बाहर संपूर्ण मालवा एवं मध्य प्रदेश में साहित्य जगत में एक उभरता हुआ चेहरा चर्चा का सुखद विषय बन गया । वह खूबसूरती के कारण नहीं वरन खूबसूरत सृजन और अपने नाम के अनुरूप भोलेपन के कारण । साहित्य क्षेत्र में एक प्रसंग आया है हेमलता शर्मा भोली बेन चर्चा में आई और उनकी सर्वत्र प्रशंसा हुई । उसका मुख्य कारण उनकी हाल ही में प्रकाशित कृति है- किनारा की खोज अपणो मालवो भाग-20जो हिंदी साहित्य के ख्यात व्यंग्यकार हरिशंकर परसाई के उपन्यास तट की खोज का मालवी रूपांतरण है ।
एक भाषा से दूसरी भाषा में रूपांतरण साहित्य के प्रचार प्रसार का महत्वपूर्ण अंग है और यह कार्य निरंतर होता रहता है पर हिन्दी से किसी प्रति का क्षेत्रीय भाषा में रूपांतरण करना यह कठिन कार्य तो होता ही है पर प्रशंसनीय भी है । भोली बेन ने यह दुष्कर कार्य कर दिखाया । अनुवादित स्वरूप में मुख्य कृति के भाव शैली और आत्मा वहीं रहने चाहिए, यह जरूरी भी है । हेमलता शर्मा ने इन नियमों का बखूबी पालन किया है । किनारा की खोज हिंदी से मालवी में अनुवाद मालवी भाषा की समृद्धि में एक सार्थक प्रयास है । इसके पूर्व मूल मालवी के कवियों साहित्यकारों के नाम याद आते हैं और अनुवाद क्षेत्र में ऐसे गिने-चुने नाम हैं । भोली बेन ने कठिन मार्ग अपनाया । ख्यात साहित्यकार परसाई जी की कृति का चयन करना निश्चित ही दोनों भाषा- भाषियों के लिए सुखद तो है ही मालवी के लिए भी अनुपम सौगात है।
कृति संदर्भ मध्य प्रदेश साहित्य अकादमी के निदेशक डॉक्टर विकास दवे का शुभेच्छा पुष्प इसकी सुगंध को और फैलायेगा । साथ ही सुपरिचित साहित्यकार डॉ स्वाति तिवारी जी का शुद्ध मालवी शुभकामना संदेश पढ़कर सुखद आश्चर्य हुआ । माया नारायणी बधेका ने मालवी में आशीर्वचन और भोली बेन का संपादकीय तो गागर में सागर है । विक्रम विश्वविद्यालय के हिंदी विभागाध्यक्ष डॉ शैलेंद्र शर्मा जी का प्राक्कथन कि किनारा की खोज निश्चय ही मालवी साहित्य को समृद्ध करने के साथ अनुवादिक परंपरा को भोली बेन ने निरंतर रखा है । हेमलता शर्मा भोली बेन ने शासकीय सेवा में अधिकारी पद पर रहते हुए सृजन के लिए मालवी को चुना, यह उनका मालवी भाषा के प्रति समर्पण का वंदनीय कार्य है । मैंने कृति पढ़ी और पाया कि रूपांतरण में सभी मापदंडों का पालन किया गया है । सहज सरल स्वरूप पाठक आसानी से समझ सकता है । पूरी कृति में से एक प्राक्कथन में यहां देना चाहता हूं- ” कय स्थिति बदली गी है ? बाहरी स्थितिहुण ही झट-झट बदले हे, भीतरी स्थिति इत्ती जल्दी नी बदले । मने जरा ऊंची आवाज में कयो । ” एक और दूसरा सुंदर उदाहरण- “एक लेर मंझधार में लय जय ने डुबय दे हे तो दूसरी उछाली ने ने किनारे लगय दे हे । हू़ं दूसरी लेर में जय री हूं । हूं किनारा की खोज में हूं ।” मुझे आशा और पूर्ण विश्वास है कि हेमलता भोली के ऐसे ही सार्थक प्रयास मालवी की लहर दोनों मिलकर घर बैठे साहित्य प्रेमियों को आनंद की लहरें देते रहे और उनका यह स्तुति प्रयास रुकेगा नहीं वरन फिर किसी श्रेष्ठ कृति का रूपांतरण मालवी में लाएगी । बोलोगे-लिखोगे तो बचेगी मालवी। अगली कृति के प्रतीक्षा में अनंत शुभकामनाएं।
पुस्तक : ‘किनारा की खोज’
अनुवादक : हेमलता शर्मा ‘भोलीबेन’
प्रकाशक : प्रिन्सेप्स प्रकाशन, बिलासपुर (छत्तीसगढ़)
मूल्य : ₹ 10/-
पृष्ठ : 86
समीक्षक – हरेराम वाजपेई अध्यक्ष हिन्दी परिवार’, इन्दौर (म.प्र.)