बीते वर्ष के अंतिम दिनों में शहर में ज्ञापन सौंपने वालों के साथ साथ कैंडल मार्च निकालकर अखबारों की सुर्खियां बनने के लिए होड़ मची हुई थी। परंतु एक पखवाड़ा बीत जाने के बाद भी खुशी पर खामोशी क्यों छाई हुई है। शीत लहर का इतना जबरदस्त असर कि सब संगठन सब सामाजिक संस्थाएं ठंडी पड़ गई वह 17 माह की मासूम भी सोच रही होगी कि यह लोग जो कैंडल जला रहे थे मेरे लिए इंसाफ मांग रहे थे अथवा अपनी सामाजिक पॉलिटिक्स की आग में फोटोबाजी कर अपनी झांकीबाजी की रोटियां सेक रहे थे। उससे भी ज्यादा दुखद तो यह है कि जिस गांव की खुशी गई है वह गांव भी खामोशी की चादर ओढ़ कर सोया हुआ है जब मामला गर्म था तब सबको चिंता थी की खुशी को इंसाफ मिले परंतु अब सबकी खामोशी का अर्थ क्या समझा जाए। क्या किसी को बचाने का प्रयास अथवा उस मासूम को गरीब होने का खामियाजा भुगतना पड़ रहा है। देखो सच कब सामने आता है अब तो सिर्फ इंतजार है,,,,,,,,
साभार- त्रिलोक जैन