
बुरहानपुर- (राकेश चौकसे) बुरहानपुर के निजी होटल में अभ्यास वर्ग के कार्यक्रम में जीत का मंत्र देते हुऐ भाजपा नेता कह रहे है कांग्रेस की नाकामी बता भाजपा से मतदाताओ को जोड़े क्या यह सच नहीं, कांग्रेस की नाकामी बताने के दीन लद गए है, अगर ऐसा नही है तब क्या
2014 – 2019 में भारतीय जनता पार्टी पूर्ण बहुमत की सरकार बनती ? केंद्र सरकार के बूते ही आम मतदाताओ ने राज्य में भी वोट करना चाह रहा था और भाजपा की पूर्ण बहुमत की सरकार तीसरी बार मध्य प्रदेश को बनाना चाह रहे थे, किंतु पार्टी में सतही तौर पर फैली गुटबाज़ी ने भाजपा सरकार सत्ता में बनी रहे इस कल्पना, इस सपने को चकना चूर कर दिया था। क्या यह सच नहीं प्रदेश स्तर पर पार्टी में समूचे प्रदेश भर में चिन्हित लोगो को चुनाव में निपटाने की होड़ मची थीं ? प्रदेश नेतृत्व चाहे जितने जीत के मंत्र दे, चाहे, कितने ही सेमिनार कर पाठशाला लगाएं, या अनुशासन का डंडा दिखाए पार्टी में एक वर्ग ऐसा पैदा हो ही जाता जो पार्टी हाईकमान को ढेंगा दिखा अपनी ओछी मानसिकता का परिचय भीतराघात कर दे जाता है। इसका प्रमाण पार्टी को 2018 में मिल गया जब विधानसभा चुनाव में चुने हुए बड़े नेता के परिजनों, मित्रो , सत्ता में बड़े पदों में बैठे नेताओ ने प्रत्याशीयो को हराने के लिऐ स्तरहीन राजनीती कर निर्दलीय, या विपक्षी प्रत्याशी के हाथ की कठपुतली बनकर पार्टी विरोधी काम कर रहे थे, कौन है वो जो कमल के चेहरे के बीच टैक्टर की सवारी कर रहे थे और दीगर मतदाताओ को सब्जबाग दिखा टैक्टर की सवारी करने के लिए प्रलोभीत कर रहे थे। भीतराघातियो की ओछी हरकत का ही दुष्य परिणम है, खंडवा ससंदीय क्षेत्र की आठ विधानसभा सीटो से भारतीय जनता पार्टी महज तीन सीट जीतने में सफल हों सकी थीं यह पांच सीट बुरहानपुर, नेपानगर, मांधाता, बड़वाह, भिकनगाव के के बूते ही कांग्रेस लंबा बनवास काटने के बाद सत्ता के सम्मुख आकर निर्दलियों के साथ सत्ता सुख भोगने लगीं इस तरह कांग्रेस का राजनीतिक सुखा या बनवास खत्म हुआ था। भारतीय जनता पार्टी की पुनः सत्ता पर काबिज होने की लंबी कहानी है , इसे समझना और समझाने का अभी उपयुक्त समय नही है। बदहाल सड़के, शहर, और ग्राम की अस्त-व्यस्त व्यवस्थाओं ,भाजपा ज़िला कार्यकारिणी की बैठक, अभ्यास वर्ग का ओचित्य और पंचायत चुनाव मुख्य मुद्दा बनकर खडा है। आज मूल प्रश्न फिर वहीं है राज्य सरकार केंद्र की सत्ता से सबक लेंगी या 2018 की पुनरावृति पंचायत चुनाव में भी दोहराई जायेंगी। प्रदेश नेतृत्व को केंद्रीय नेताओ से सबक लेना चाहिए जिन्होंने गठबंधन धर्म का पालन करते हुए पूर्ण बहुमत मिलने के बाबजूद घटक दलों को सम्मान देते हुए निर्धारित मापदण्ड के बूते मंत्री पद की भागीदारी भी सुनिश्चित करी थी। एक और केंद्र में गठबंधन सरकार चुनाव से पहले बने गठबंधन धर्म का पालन कर रही थी वहीं राज्य चुनाव में पार्टी के नेता पार्टी के बनाए अनुशासन को भंग कर पार्टी प्रत्याशी को निपटाओ अभियान चलाती है , और प्रदेश का नेतृत्व इनकी हरकतों को नज़र अंदाज़ कर सत्ता सुख भोगने के लिए सत्ता और पद से नवाजकर हारे प्रत्याशी को मुंह चिढ़वाती है। 2018 विधान सभा चुनाव मध्यप्रदेश में जितना खामियाजा पार्टी ने भीतराघातियो से झेला है उसे भुलाना संभव नही है। एक यक्ष प्रश्न यह भी है बड़े नेताओ के संरक्षण के बिना भीतरघात संभव नही हों सकता था क्या ? आखिर 2018 के चुनाव की हांडी में खिचड़ी पका कौन रहा था, उत्तर आज भी अनुत्तर बना हुआ है। और इस दंश को बुरहानपुर विधानसभा प्रत्याशी दीदी अर्चना चिटनिस, नेपानगर के साथ अन्य तीन प्रत्याशियों को झेलना पड़ा था, हम समूचे प्रदेश का आकलन करने के मुड़ में नही है किंतु बुरहानपुर के निजी होटल में चल रही तीन दिवसीय कार्यशाला और प्रशिक्षण शिविर की महत्ता, उपयोगिता के साथ इसके भविष्य का आकलन करें तो दूध में कालापन आज नजर न आए पर दूध काला नही होगा! यह पंचायत चुनाव में देखने को मिलेगा। क्योंकि पदासिन राजनीतिक महत्वाकांक्षा पाले नेता अपना अतीत बहुत जल्दी भूलकर पार्टी के बजाए खुद का जनाधार बड़ाने में लगे दिखाई देने लगे है। देखना दिलचस्प होगा की सत्ताधारी दल के नेता पंचायत चुनाव की रुपरेखा एक जाजम पर बैठकर बनाते है, या गुटो में बटे नेता अपनी अलग अलग हांडी पकाते नजर आते है। बदहाल सड़के, अस्तव्यस्त ट्रैफिक, अभ्यास वर्ग का ओचित्य, और पंचायत चुनाव अभी ठंडे बस्ते में ही रहने देते है,,,,,,,,,,,,,,