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Thursday, Apr 24, 2025
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सामूहिक दायित्व निर्वहन से ही बचेगी गौमाता

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गौवंश हमारी सनातन संस्कृति का आधार है। वेदों में भी गाय को पृथ्वी और बैल को साक्षात धर्म का रूप माना गया है। किन्तु यदि धरातल पर गौवंश की वास्तविक स्थिति के बारे में विचार किया जाये तो वह बेहद दर्दनाक और अमानवीय है। भूख से व्याकुल गौवंश आमजन को सड़क किनारे पड़ी हुई पॉलीथिन और सड़े गले कागज खाकर अपना जीवन बचाने का प्रयास करता हुआ देखा जा सकता है।
सरकार द्वारा गौ संरक्षण एवं गौ संवर्धन कानून के बनाए जाने के बाद भी गौवंश की रक्षा और कल्याण नहीं हो पा रहा है इसकी मुख्य वजह गौवंश की देखभाल औऱ रक्षा हेतु कोई जवाबदेही तय नहीं होना है।
पूरे मध्यप्रदेश में पूर्व से भी कई गोशालाएं धार्मिक संस्थाओं द्वारा संचालित की जा रही है और शासकीय स्तर पर भी अनेक गौशालाओं का निर्माण पूर्ण हो चुका है फिर भी आश्चर्य का विषय है कि लगभग आधे से भी ज्यादा गोवंश सड़कों पर भूख से व्याकुल होकर भटकता रहता है। जिनमें से कुछ की मृत्यु सड़क दुर्घटना में हो जाती है कुछ भूख से तो कुछ गौतस्करों द्वारा निर्ममता पूर्वक मौत के घांट उतार दिया जाता है। इसके लिए हम सभी नैतिक रूप से जिम्मेदार है जो गाय को माता के रूप में पूजकर उसका जयकारा सदियों से लगाते आ रहे हैं।
एक अधिवक्ता होने के कारण न्यायालय में गौवंश की तस्करी और अवैध परिवहन से संबंधित कई आपराधिक मामलों में पैरवी करने का सामना करना पड़ता है। एक ऐसा प्रकरण जिसमें पैरवी के दौरान ज्ञात हुआ कि पिकअप वाहन में लगभग 20 क्विंटल से भी अधिक गौमांस का परिवहन किया जा रहा था जिसे पुलिस द्वारा जप्त किया गया था।कल्पना की जा सकती है कि कितने बड़े स्तर पर अवैध रूप से गौवंश को मारा गया होगा।
हमारे देश में प्राचीन काल से ही गाय को पूरा मान-सम्मान दिया जाता है, तथा सरकार द्वारा गौसंरक्षण हेतु कई कानून भी बनाए गए फिर भी कानून के सार्थक परिणाम सामने नहीं आ रहे हैं।
गौ संरक्षण करना एकमात्र सरकार का ही दायित्व नहीं है बल्कि सरकार से भी ज्यादा जवाबदेही देश के आम नागरिक की है। लोगों द्वारा लगातार की जा रही गौवंश की उपेक्षा के कारण आज देश भर में गौमाता की दुर्दशा हो रही है।
देशभर में किसानों द्वारा भी गौवंश को फसलों में नुकसान के डर से सड़कों पर भगा दिया गया है और सड़क के दोनों और तार फेंसिंग या काँटों की बागड़ लगा दी जाने के कारण गायों को सड़क छोड़कर खेत या खुली भूमि में चरने जाने हेतु कोई स्थान शेष नहीं बचा है। कई स्थानों पर तो लावारिस पशुओं को कई किलोमीटर तक सड़क से नीचे उतरने की कोई जगह तक नहीं बची है। ऐसी स्थिति में गौवंश को सड़कों पर भूखा प्यासा बैठकर मरने के अतिरिक्त अन्य कोई रास्ता नहीं है।
वहीं दूसरी ओर सड़कों पर बैठे हुए सैकड़ों गौवंश के कारण प्रदेशभर में सड़क दुर्घटनाएं भी बड़ी है जिसमें कई निर्दोष यात्रियों की दर्दनाक मौतें हो रही है।
यदि हमें वास्तव में गौरक्षा करना है तो हमें गौसंरक्षण कानून के अलावा उन सभी गोशालाओं को व्यवस्थित कर गौवंश के चारा-पानी, रख रखाव तथा गोवंश की देखभाल तथा उपचार करने वाले कर्मचारियों की समुचित व्यवस्था करनी होगी। उनकी जवाबदेही तय करना होगी तभी सच्चे मायने में हम गाय को सनातन धर्म की माता कहने के अधिकारी होंगे एवं सामूहिक दायित्व निर्वहन से ही गौमाता को बचाया जा सकेगा।
लेखक
जे.पी.शर्मा
लोकअभियोजक (राजगढ़)

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