प्रदेश में 4 दिसंबर से पेसा एक्ट लागू कर दिया गया है। इसके तहत अब बिना लाइसेंस सूदखोरों से लिया 15 अगस्त 2020 तक का सारा कर्ज माफ हो जाएगा। यानी बिना किसी लाइसेंस के किसी सूदखोर ने आपको कर्ज दिया है तो ऐसा 15 अगस्त 2020 तक का कर्ज सरकार ने माफ कर दिया है। यानी सूदखोर आपसे कर्ज की वसूली नहीं कर सकता है।
मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा कि “पेसा एक्ट के प्रावधानों के तहत अनुसूचित क्षेत्रों में सुविधाओं को सशक्त बनाने का फैसला कर लिया गया है। पेसा एक्ट के भावना के अनुरूप ग्रामसभा बनाने के लिए अधिसूचना जारी कर दी गई है। हमें पानी पी पीकर कोसने वालों, जब तुम्हारी सरकार आई थी तुमने पेसा एक्ट के लिए क्या किया बता तो दो…..?? कुछ विधायक बन गए, बात करते रहे, आंदोलन चलाते रहे, तुमने क्या किया। शिवराज सिंह चौहान और भारतीय जनता पार्टी की सरकार, आज ये लागू कर रही है। ग्राम सभाएं सशक्त होंगी, ग्राम सभाओं को अधिकार दिए जा रहे हैं ताकि, इन गांव में रहने वाले हमारे भाइयों और बहनों की जिंदगी बदल सकें। किसी गरीब को परेशान किया तो, सीधा हथकड़ी लगाकर जेलों मे चक्की पिसवाई जाएगी ।अनैतिक काम करने वालों को हम किसी भी कीमत पर नहीं छोड़ेंगे।”
सीएम शिवराज ने ये भी कहा
“मध्यप्रदेश ने ये कानून बना दिया है। 15 अगस्त 2020 तक जिन सूदखोरों ने बिना लाइसेंस के ज्यादा ब्याजदरों पर कर्ज दिया था वो, सारा कर्ज माफ किया जाता है। वो कर्ज वापस नहीं देना पड़ेगा, ये शोषण से मुक्ति का अभियान भारतीय जनता पार्टी की सरकार ने, मैं पूरे प्रदेश मे कह रहा हूं सूदखोर सुन लें!”
क्या है पेसा एक्ट?
इस एक्ट के अधीन स्थानीय संसाधनों पर स्थानीय अनुसूचित जनजाति के लोगों की समिति को अधिकार प्रदान किये गये हैं, साथ ही आदिवासी समाज की परम्पराओं, रीति रिवाज तथा सांस्कृतिक पहचान और विवादों आदि के समाधान के लिये परम्परागत ढंगों के प्रयोग के लिये ग्राम सभाओं को सक्षम बनाने का प्रावधान किया गया है। जनजातीय ग्राम सभाओं को भूमि अधिग्रहण और पुनर्वास के कार्यों में अनिवार्य परामर्श की शक्ति प्रदान की गयी है। यह एक्ट 24 अप्रैल 1996 को बनाया गया था और इसे अब लागू किया गया है। भूरिया समिति की अनुशंसाओं पर आधारित पेसा एक्ट यानी ‘पंचायत उपबंध (अनुसूचित जनजाति क्षेत्रों तक विस्तार) विधेयक’ का प्रमुख उद्देश्य यह था कि केन्द्रीय कानून में जनजातियों की स्वायत्ता के बिन्दु स्पष्ट कर दिये जाय जिनका उल्लंघन करने की शक्ति राज्यों के पास न हो।