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Saturday, Sep 21, 2024
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बुरहानपुर जिला मध्यप्रदेश समाज संगठन

बुरहानपुर जिले में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक ने अनेक कार्यक्रमों में की शिरकत। महाजनापेठ में परम पूज्य गोविंद नाथ महाराज की समाधि का किया लोकार्पण, शिकारपुरा में धर्म संस्कृति सम्मेलन को किया संबोधित, ऐतिहासिक गुरुद्वारे में मत्था टेका

बुरहानपुर (इक़बाल अंसारी) हमें अमूल्य देन मिली है। बहुत से राष्ट्र दुनिया में आए और चले गए। भारत तब भी था, आज भी है और कल भी रहेगा। क्योंकि यहां धर्म देने का काम सबल बनाते रहता हैं। यह वही करने का समय है। हमें अपने ही देश में परंपरा से भारतीय मतों के मानने वाले लोगों में जो विचलन आ गया है उन्हें धर्म की जड़ों में पक्का स्थापित करना है। यही सत्य कार्य है। धर्म में जाग्रत करना ईश्वरीय कार्य है। हम सब मिलकर प्रयास करेंगे। बाहर की परिस्थिति का विचार करते है तो बौखला जाते हैं। बौखलाने की जरूरत नहीं है। हम सब जितने सक्रिय होंगे। उतना सब जल्दी ठीक होने वाला है।
यह बात राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने महानापेठ में पपू गोविंदनाथ महाराज की समाधिक के लोकार्पण अवसर पर कही। उन्होंने कहा-हमारे पास सत्य, करूणा, सुचिता, तपस है। अगर धर्म के आधार कोई बलवान खड़ा होता है तो वह दिखने मात्र से बिखर जाता है। हमें अपनो को जागृत करना है। सुप्रीम कोर्ट ने भी कह दिया है कि लोभ, लालच, जबरदस्ती से मतांतरण ठीक नहीं है। जैसे जैसे देश खड़ा हो रहा है वैसे वैसे जो नुकसान हुआ है वह पूरा होने के आसार दिख रहे हैं। धर्म देने वाला भारत है। यह सबकी आवश्यकता है। लोगों को धर्म, संस्कृति, नीति से जोड़ना है। 100 साल की अवधि में पूरा बदल देने वाले लोग यहां आए, लेकिन जो सैकड़ों साल से काम कर रहे हैं उनके हाथों में कुछ नहीं लग रहा है। समाज को ज्ञान रहे तो वह छल कपट को पहचान सकेगा। इसलिए उसमें आस्था पक्की करना चाहिए। हमारे व्यक्ति को रामायण तो पता है, लेकिन उसका भाव नहीं पता। उसे तैयार करना पड़ेगा ताकि सवाल पूछने वाले को सही जवाब दे सके। उसका यह कच्चापन हमको दुख करता है। हमारे पूर्वजों ने हमारी जड़ें पक्की की, उसे उखाड़ने का आज तक प्रयास होता रहा। हमारे लोग नहीं बदलते। जब उनका विश्वास उठ जाता है कि हमारा समाज हमारे साथ नहीं तब ऐसा होता है। हमें उन्हें जोड़ना है। मप्र में 150 साल पहले पूरा का पूरा गांव ईसाई बना था। बाद में पूरा गांव वापस आ गया। हजारों मिल दूर से मिशनरी आकर उनका खाता, पीता है और उसे ही बदलता है। बहुत शीघ्र धर्म के मूल्यों के आधार पर दुनिया चलने वाली है और सबसे पहले भारत चलेगा। 20-30 साल में यह परिवर्तन हम सभी के प्रयासों से देखने को मिलेंगे। संघ में नीचे से काम होता है। इस दौरान शंकराचार्य, महामंडलेश्वर हरिहरानंद महाराज अमरकंटक, जितेंद्रनाथ महाराज श्रीनाथ पीठाधेश्वर सहित अन्य संत मोजूद थे।
धर्म संस्कृति सम्मेलन-यहां बोले- शाखा जो 1 घंटे सिखाती है उसे 23 घंटे अमल में लाएं
राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ के सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत ने शिकारपुरा स्थित गुर्जर भवन में आयोजित धर्म संस्कृति सम्मेलन में कहा ये जात पात, पंथ, संप्रदाय, पूजा के भेद छोड़ दो। यह विश्व ही मेरा घर है यह मानकर चलो। सबका ख्याल रखकर अपना ख्याल रखना है। सभी के मुख से मंगल विचार, मंगल वाणी निकलना चाहिए। देश की भक्ति, सभी के प्रति सद्भाव होना चाहिए। एक घंटे जो शाखा सिखाती है उसे 23 घंटे अपनाना है। दुनिया का ध्यान भारत की तरफ है। भारत को गुरू बनाना चाहती है दुनिया, लेकिन भारत को इसके लिए तैयार होना पड़ेगा। इस दौरान शंकराचार्य, महामंडलेश्वर हरिहरानंद महाराज अमरकंटक, जितेंद्रनाथ महाराज श्रीनाथ पीठाधेश्वर सहित अन्य संत मोजूद थे। धर्म संस्कृति सम्मेलन में हजारों की संख्या में लोग पहुंचे। आसपास के जिलों से एक दिन पहले से ही यहां लोगों के आने का सिलसिला शुरू हो गया था।
यह भी जानिए
1918 के बाद अब हुआ समाधि का जीर्णोद्धार
1918 में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव बलीराम हेडगेवार ने बुरहानपुर में पपू गोविंदनाथ महाराज की समाधि का जीर्णोद्धार कराया था। यह समाधि ताप्ती नदी के किनारे महाजनापेठ में है। पपू गोविंदनाथ महाराज अहिल्या बाई होल्कर के गुरू माने जाते हैं। अब उसी समाधी का 105 साल बाद फिर से जीर्णोद्धार हुआ है। यहां समाधि और राम दरबार का लोकार्पण करने आए आरएसएस के वर्तमान सर संघचालक डॉ. मोहन भागवत बुरहानपुर आए।
खास बात यह है कि 1933 में संघ की बुरहानपुर जिले में पहली शाखा की शुरूआत भी यहीं से हुई थी। 1962 में ताप्ती नदी में आई बाढ़ के कारण समाधी स्थल को नुकसान पहुंचा था। अब इसका जीर्णोद्धार कराया गया है जिसका लोकार्पण डॉ. मोहन भागत ने किया। साथ ही उन्होंने भगवान श्रीराम दरबार प्रतिमा स्थापना का लोकार्पण भी किया।
यह है इतिहास स्वामी गोविंदनाथ को माना जाता है गोरक्षनाथ का अवतार
भारत में नाथ परंपरा प्रसिद्ध है। नाथ परंपरा में भगवान दत्तात्रय, ऋषि अत्रि और उनके 32 ऋषि हुए हैं। महाराष्ट्र की संत भूमि दौलताबाद में स्वामी जनार्दन व पैठन में स्वामी एकनाथ महाराज विराजित थे। इसी नाथ परंपरा की श्रृंखला में 300 वर्ष पूर्व जगद्गुरु स्वामी गोविन्दनाथ महाराज विराजित हुए थे। जिनका कालखण्ड सन् 1722 से 1812 रहा। नाथ परम्परा की मुख्य पीठ महाराष्ट्र के अमरावती जिले के अंजनीग्राम अंजनगांव सुर्जी में स्थित है। यह स्थान नाथ परम्परा का मुख्य स्थान है। जिसके वर्तमान पीठाधिश्वर स्वामी जितेन्द्रनाथ महाराज है। यह पीठ देवनाथ मठ के नाम से प्रसिद्ध है। जगतगुरु स्वामी गोविन्दनाथ को गोरक्षनाथ का अवतार माना जाता है, उनका गोरखपुर की गोरक्षपीठ उप्र से निकट का संबंध रहा है। पुण्यश्लोक अहिल्यादेवी होलकर उन्हे गुरु स्थान पर मानती थी। इस स्थान पर निर्माण कार्य भगवान परब्रह्म महारुद्र स्वामी देवनाथ सन 1754 से 1821 तथा उनके उत्तराधिकारी पपू स्वामी दयालनाथ ने किया था। तत्कालीन नागपुर के राजे रघुजी भोसले, श्रीमंत दौलतराव सिंधिया, सवाई माधवराव पेशवा, सरदार भुस्कुटे, सादार घाटगे उन्हे गुरु स्थान मानते थे। इस स्थान का जीर्णोद्धार स्वतंत्रता के पूर्व सन् 1918 में पपू मारुतीनाथ महाराज की प्रेरणा से नागपुर के राजे लक्ष्मणराव भोसले को साथ लेकर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संस्थापक डॉ केशव बलीराम हेडगेवार ने बुरहानपुर में रहकर करवाया था। इसी स्थान पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की बुरहानपुर की पहली शाखा 1933 में प्रारंभ हुई। 1962 की ताप्ती नदी की भीषण बाढ़ से हुआ जिसके पुर्नजिर्णोद्धार का बीड़ा वर्तमान पीठाधिश्वर स्वामी जीर्णशीर्ण जितेन्द्रनाथ ने उठाया उन्ही की प्रेरणा से यह पवित्र भूमि जीवंत हो उठी है। गुरु ग्रंथ साहिब संपूर्ण हिंदू समाज की प्रेरणा का केंद्र -मोहन भागवत
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सर संघ चालक श्री मोहन जी भागवत ने रविवार शाम को बुरहानपुर स्थित गुरुद्वारा बड़ी संगत पर दर्शन करने पहुँचे।उन्होंने श्री गुरु गोविंद सिंह जी महाराज द्वारा लिखित एवं हस्ताक्षरित स्वर्ण गुरु ग्रंथ साहब के दर्शन किए। इस अवसर पर उन्होंने कहा कि गुरु ग्रंथ साहब समस्त हिंदू समाज के लिए प्रेरणा का केंद्र हैं। मैं यहाँ से प्रेरणा लेकर जा रहा हूँ। श्री गुरुद्वारा प्रबंधन कमेटी के अध्यक्ष द्वारा सरसंघचालक जी का स्वागत किया। वे लगभग 40 मिनट तक वहाँ रुके एवं ज्ञानी जी से चर्चा की एवं श्री गुरुद्वारा साहिब के इतिहास एवं सिख समाज के नवें गुरु , गुरु तेग़ बहादुर साहेब जी के बलिदान के बारे में जाना।

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