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Saturday, Sep 21, 2024
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इन्दौर संभाग कला एवं साहित्य मध्यप्रदेश

मालवा में छोटी दिवाली असे मने।- भोली बेन

आज देवउठनी ग्यारस अने तुलसा जी को ब्याव करां
“बोर भाजी आंवळा
उठो देव सांवळा”
मालवा में असो बोली ने आज का दन सोया हुआ देव के उठायो जाय हे। अपणा हिंदू धरम में ग्यारस को भोत माहत्तम हे। इमे भी देव उठनी ग्यारस को ओर जादा। कार्तिक शुक्ल पक्ष की ग्यारस पे भगवान विष्णु जी चार मईना का आराम का बाद उठे हे, एका वास्ते इनी ग्यरस के देव उठनी ग्यारस (देव प्रबोधिनी एकादशी) बोल्यो जाय हे ।आज का दन सुबे से उठी ने स्नान ध्यान करो, बरत करो। भगवान विष्णु जी का चरण (पगल्या) घर में बणाव ने सात्यो मांडी ने शंख, घंटाल बजय ने देव उठाव । आज का दन सात्विक भोजन करो। तुलसी क्यारा में ११ सरावला लगाव। सांटा को मण्डप बणाव, अन्नकुट करो, गरीब गुरबा होण के जिमाव, दानपुन करो,नद्दी में दीवा छोड़ो । गो माता की पूजा करो । बेल-बछड़ा के पूजो, उनके मेंदी लगाव ने उनको साज सिंगार करो । घर बारने दीवा लगाव, फटीका छोड़ो ने उल्लास का साते छोटी दिवाली मनाव। यो ज इको माहत्तम हे।
देवउठनी का बारां में भी एक पोराणिक कथा चलन में हे । एक दाण लछमी जी ने स्त्री सुलभ भाव से विष्णु जी से कयो- स्वामी ! तम सदा जागता रो कदी आराम भी करया करो, जग का पालनहार हो इको मतलब यो नी हे के लगातार काम करता रो। तम सोने को नेम बणाव।तो भगवान विष्णु जी ने के सोर बरस का आधार पे चोमासां (वर्षाकाल ) का चार मईना सोने को नेम बणाओ। इनी बखत सब तरे का मांगलिक/ शुभ काम पे प्रतिबंध रे।
धार्मिक मानता होण का अनुसार भगवान विष्णु देवसोनी ग्यारस से लय ने देव उठनी ग्यारस तक पाताल लोक में निवास करे हे। वामन पुराण का अनुसार भगवान विष्णु जी ने वामन अवतार में राजा बलि से तीन पग भूमि मांगी थी तो दानवीर राजा बलि से प्रसन्न खुस हुय ने भगवान विष्णु ने राजा बलि के पाताल लोक को राजो बणय दियो ने वर मांगने को कयो तो राजा बलि ने भगवान विष्णु से पाताल लोक में निवास करने को वरदान मांगी ल्यो । जद से ज चार मईना वास्ते भगवान विष्णु पाताल लोक में निवास करे हे । इका कारण धरती पे शुभ अने मांगलिक कार्य नी हुय पाय हे ने फेर देवउठनी ग्यारस से ज शुरू होय। इन चार मईना के ज चातुर्मास कयो जाय हे ।
देव उठनी ग्यारस याने के आज का दन मंदिर होण में घंटाल बाजे ने तुलसा जी( लछमी जी को सरूप) को ब्याव शालिगराम (विष्णु जी को सरूप)जी से करायो जाय हे । इका पाछे भी एक पोराणिक कथा चलन में हे। कथा का अनुसार प्राचीन काल में तुलसी जिनको एक नाम वृंदा हे,शंखचूड़ नाम का असुर की घरवाली थी। शंखचूड़ दुराचारी अने अधर्मी थो,देवता ने मनुष्य सब इनी असुर से त्रस्त था। तुलसी का सतीत्व का कारण सब देवता मिली ने भी शंखचूड़ को वध नी करी पय रया था तो सब देवता मिली ने भगवान विष्णु अने शिवजी का पास पोच्यां अने उनसे असुर के मारने को उपाव पूछ्यो। उनी टेम भगवान विष्णु जी ने शंखचूड़ को रूप धरी ने तुलसा जी को सतीत्व भंग करी दियो। जिसे शंखचूड़ की शक्ति खत्म हुई गी अने शिवजी ने उको वध करी दियो। बाद में जद तुलसा जी के या बात मालम पड़ी तो उनने भगवान विष्णु जी के भाटो बणी जाने को शाप दय दियो। विष्णुजी ने तुलसा जी का शाप के सुवीकार करी ने कयो के पृथ्वी पर तम पोधा ने नदी का रूप में रीजो लोगोण तमारी पूजा करेगा । म्हारा भक्त होण अपणो ब्याव करय ने पुण्य लाभ प्राप्त करेगा । उनी दिन कार्तिक शुक्ल की ग्यारस थी । उनका दन से ज तुलसा जी नेपाल की गंडकी नदी ने पोधा का रूप में आज भी धरती पे हे। गंडकी नदी में ज शालिगराम जी मिले हे। आज का दन जिन धणी बयरा के कन्या नी होय वी भी तुलसा जी को ब्याव करी ने कन्यादान को पुन कमाय हे। भगवान विष्णु जी के तुलसा जी भोत प्रिय हे। उनका भोग में तुलसा दल जरूर रख्यो जाय हे। तुलसा ब्याव का आयोजन को उद्देश्य पर्यावरण संरक्षण को संदेसो भी देना हे के सब झाड़-झड़ुकला भगवान का ज सरूप हे, जो अपणे जीवनवायु याने के ऑक्सीजन दे हे तो इनको संरक्षण करनो चिए ।
अपणा मालवा में असो मान्यो जाय हे के देव उठनी ग्यारस से मोसम बदले हे ने शीत लेर चले। आज से स्यालो शुरू हुय जाय तो अन्नकूट करी ने भगवान के छप्पन भोग लगाय जिमे गोळ(गुड़), सांठा, मेथी,मूली सरीखी भाजी होण को भोग लगे । आज से ज मालवा का लोगोण गोळ को सेवन करनो शुरू करी दे हे। गोळ सांटा से ज बणे हे तो संझा का टेम चार सांटा को मण्डप बणय ने उमे ज तुलसा जी ने सालिगराम जी को ब्याव कराय हे। आज का दन से ज सांटा की नवी फसल की कटई होय तो अपणा हिन्दू धरम में सांटा ने उका रस की मिठास के शुभ मान्यो जाय हे असी ज मिठास घर-परिवार में भी बणी रे ने सुख-समृद्धि आय ।
देवउठनी की घणी घणी बधई ने सुभकामना।
स्वलिखित तमारी आपणी
भोली बेन इंदौर

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