शिक्षक का पेशा समाज द्वारा सन्मान से देखा जाता है क्योंकि शिक्षक की भूमिका राष्ट्र निर्माण के रूप देखी जाती है। इस भूमिका को ग्राम बंभाडा के शिक्षक बखूबी निभा रहे है।
ज्ञात हो कि ग्राम बंभाडा को शिक्षकों का गांव भी कहा जाता है। इस गांव की शिक्षा के प्रति काफी रुचि है, बेटे-बेटियों के साथ ही बहुओं को भी पढ़ने का मौका दिया जा रहा है। इसी का एक उदाहरण है स्वाती प्रवीण चौधरी।
इनका जन्म अकोला महाराष्ट्र में होकर 1998 में विवाह बंधन में बंधकर मध्यप्रदेश के ग्राम बंभाडा के चौधरी परिवार में बहु के रूप में अपने कर्तव्य का निर्वाहन शुरू किया। जब स्वाती चौधरी यहाँ ब्याहकर आई थी तब उनकी पढ़ाई हायर सेकंडरी तक थी, इनके ससुर खेमचंद चौधरी जो एक शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं दे रहे थे शिक्षा का महत्व भलीभांति जानते थे इसलिए उन्होंने अपनी बहू को आगे की पढ़ाई के लिए प्रेरित किया। स्वाती चौधरी ने भी उन्हें मिले इस अवसर स्वीकार किया। अपनी आगे की पढ़ाई के साथ साथ सरस्वती शिशु मंदिर में सेवाएं देना प्रारंभ किया। बी ए, डी ऐड करने के बाद व्यापम में भी सफलता प्राप्त की और 2006 में शासकीय स्कूल बंभाडा में अपनी सेवाएं प्रारम्भ की साथ ही अपनी आगे की पढ़ाई भी जारी रखी और आगे एम ए संस्कृत एवं बी एड की पढ़ाई पूरी की।
अपने परिवार से प्रेरणा लेकर सामाजिक, सांस्कृतिक क्षेत्र में भी अपनी सहभागिता बनाए रखी। महिला शिक्षिकाओं का सम्मान समारोह, महिला शिक्षा की प्रणेति माता सावित्रीबाई फुले की जयंती, शाला में वार्षिक उत्सव जैसे कार्यक्रमों में अपकी सक्रिय भागीदारी रहती है। आंखों से दृष्टि नही होने वाली लेकिन दृढ़इच्छाशक्ति रखनी बालिकाओं से भी आपको काफी लगाव है। महेश दृष्टि आश्रम इंदौर में आपका जाना-आना होता है जिसके कारण वहां के कुछ बच्चियों के साथ आपका मां-बेटी जैसा रिश्ता बन गया है।
अपनी इस सक्रियता के लिए वे अपने गावं को प्रेरणास्त्रोत मानती है यहाँ होने वाले विभिन्न सामाजिक और सांस्कृतिक कार्यक्रमों से ही उन्हें प्रेरणा मिलती है। साथ अपनी शैक्षणिक सफलता के लिए अपने सांस-ससुर, नंनद एवं पति को श्रेय देती है।
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