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Saturday, Sep 21, 2024
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कृषि बुरहानपुर जिला मध्यप्रदेश

अच्छे और अधिकतम उत्पादन हेतु जो नियम जंगल में काम करते है, वहीं नियम खेत में भी कारगर सिद्ध होता है-राज्यपाल आचार्य देवव्रत

बुरहानपुर। प्राकृतिक खेती रासायनिक खेती और आर्गेनिक खेती दोनों से भिन्न हैं। जो नियम जंगल में काम करते हैं, वहीं नियम खेत में भी काम करना चाहिए। इसे प्राकृतिक खेती कहते हैं। जहर मुक्त और कम लागत वाली इस खेती से आर्थिक, आध्यात्मिक, मानसिक लाभ के साथ पुण्य भी मिलता है। इस खेती से देशी गाय बच जाएंगी। बीमारी से लोगों को मुक्ति मिलेगी। किसानों की आय बढ़ेगी, समृद्धि-उन्नति का रास्ता भी बनेगा।
यह बात गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने बुरहानपुर के ग्राम धामनगांव में मां वाघेश्वरी ग्रामोदय मेला अंतर्गत आयोजित दो दिवसीय प्राकृतिक खेती पर कार्यशाला का वर्चुअली उद्घाटन करते हुए कही। राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि देश की जमीन और किसान को प्राकृतिक खेती ही समृद्ध कर सकती है। उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार है। इस संकट की घड़ी में कृषि वैज्ञानिकों को प्राकृतिक खेती के प्रति किसानों को जागरूक करना होगा। प्राकृतिक खेती में जहां लागत कम लगती है वहीं किसानों की आय दोगुनी होती है। प्राकृतिक खेती करने के लिए भारत की किसी भी देसी गाय के गोबर व गोमूत्र से खाद बनाने के तरीके भी समझाए। उन्होंने बताया कि एक गाय से उसके एक दिन के गोबर व मूत्र से एक एकड़ की खाद तैयार हो जाती है। उन्होंने बताया कि गाय के एक ग्राम गोबर से 300 करोड़ सूक्ष्म जीवाणु पैदा होते हैं। उन्होंने समझाया कि करीब 200 लीटर का एक ड्रम लें, उसमें 170 से 180 लीटर पानी डालें। फिर उसमें एक दिन का गोबर व गोमूत्र डाल दें। उसमें डेढ़ से दो किलो गुड़, डेढ़ से दो किलो दाल का बेसन, पेड़ के नीचे की एक मुट्ठी मिट्टी डाल दें। सुबह-शाम पांच मिनट तक उसे किसी डंडे से हिलाएं। इसके बाद यह घोल जीवामृत बन जाएगा। यह एक एकड़ की खाद तैयार होगी। इसको खेती में पानी देते समय पानी के साथ छोड़ सकते हैं या फिर उसका सूक्ष्म सिंचाई के माध्यम से पौधे तक पहुंचा सकते हैं, जिससे वह पौधे की जड़ तक चली जाएगी।
जैविक खेती और प्राकृतिक खेती में है अंतर
गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती शून्य लागत वाली खेती है, जिसकी खाद की “फैक्ट्री देशी गाय और दिन-रात काम करने वाला मित्र केंचुआ” है। उन्होंने जैविक और प्राकृतिक खेती के बीच अंतर बताया। साथ ही प्राकृतिक खेती की विधि को विज्ञान आधारित उदाहरणों और स्वयं के खेती के अनुभवों के आधार पर समझाया। उन्होंने बताया कि रासायनिक तत्वों का खेत में उपयोग, मिट्टी की उर्वरा शक्ति को समाप्त कर देता है। जैविक खेती की उत्पादकता धीमी गति से बढ़ती है। साथ ही आवश्यक खाद के लिए गोबर की बहुत अधिक मात्रा की आवश्यकता होती है, जिसके लिए प्रति एकड़ बहुत अधिक पशुओं की जरूरत और अधिक श्रम लगता है।
रासायनिक खाद से फसलें होती हैं जहरीली
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने बताया कि भूमि की उर्वरा शक्ति आर्गेनिक कार्बन पर निर्भर करती है। हरित क्रांति के सूत्रपात केंद्र, पंत नगर की भूमि में वर्ष 1960 में आर्गेनिक कार्बन की मात्रा 2.5 प्रतिशत थी, जो आज घटकर 0.6 प्रतिशत रह गई है। इसकी मात्रा 0.5 प्रतिशत से कम होने पर भूमि बंजर हो जाती है। रासायनिक खाद और कीटनाशक का अंधाधुंध उपयोग फसलों को जहरीला बनाता है। इसी कारण कैंसर जैसे गंभीर रोग के मरीजों की संख्या बढ़ती जा रही है।
इस तरह बनते हैं प्राकृतिक खेती में खाद और जैविक कीटनाशक
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ाने और जहरीले तत्वों से मानव जाति को बचाने के लिए गो-आधारित प्राकृतिक खेती ही सबसे प्रभावी समाधान है। गो-आधारित प्राकृतिक खेती के लिए खाद और कीटनाशक देसी गाय के गोबर और मूत्र से बनते हैं। इनमें दाल का बेसन, गुड़, मुट्ठी भर मिट्टी और 200 लीटर पानी मिलाना पड़ता है। किसान यह जीवामृत स्वयं तैयार कर सकते हैं। जीवामृत खेत की उर्वरा शक्ति को उसी तरह बढ़ाता है, जैसे दही की अल्प मात्रा दूध को दही बना देती है। एक एकड़ भूमि के लिए जीवामृत, देसी गाय के एक दिन के गो-मूत्र और गोबर से तैयार हो सकता है। उन्होंने कहा कि एक गाय से 30 एकड़ भूमि में प्राकृतिक खेती की जा सकती है। जीवामृत से उत्पन्न होने वाले जीवाणु किसान के सबसे बड़े मित्र हैं। केचुएँ की सक्रियता भूमि में गहरे तक जल रिसाव को बढ़ाती है, इससे जल संचयन क्षमता भी बढ़ती है।
प्राकृतिक खेती से किसानों की आय में वृद्धि भी संभव
राज्यपाल देवव्रत ने कहा कि प्राकृतिक खेती में भूमि को ढँक कर रखना (मलचिंग) भी जरूरी है। इससे तीन वर्षों में 70 प्रतिशत तक जल की बचत होती है। जीवाणुओं को बढ़ने के लिए भोजन मिलता है, आर्गेनिक कार्बन बचता और खरपतवार भी नहीं उगते हैं। उन्होंने कहा कि एक बार में अनेक फसलें लेने से मिट्टी की उर्वरा क्षमता बढ़ती है तथा अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है। इससे किसानों की आय में वृद्धि होती है।
राज्यपाल आचार्य देवव्रत ने कहा कि अच्छे कर्मों से अच्छा फल प्राप्त होता है। जो किसान प्राकृतिक कृषि कर रहे हैं, वह ईश्वरीय व्यवस्था में सहयोगी बन रहे हैं। पिछले कई वर्षों से प्राकृतिक कृषि करने वाले किसान जमीन, पानी और वायु बचाकर लोगों को तंदुरुस्त स्वास्थ्य प्रदान कर रहे हैं।
कार्यशाला को संबोधित करते हुए पूर्व मंत्री श्रीमती अर्चना चिटनिस (दीदी) ने कहा कि बुरहानपुर जिले में उगाई जा रही केला, कपास, मक्का एवं अन्य फसलों में प्राकृतिक खेती को अपनाकर कैसे किसान की खर्च को बचाया जा सकता है और कृषि की लागत को कम किया जा सकता है। जिससे जल, मिट्टी और वातावरण को बल मिल सके। उन्होंने बताया कि बुरहानपुर जिला कृषि आधारित जिला है, जिसका कुल क्षेत्रफल 342741 हेक्टेयर है, जिसमें से कृषि योग्य रकबा 118000 हेक्टेयर है, जिसमें सिंचित क्षेत्रफल 65700 हेक्टेयर है। जिले की मुख्य फसलें कपास, केला, गन्ना, मक्का है। खरीफ में अनाज फसलों का रकबा 24300 हेक्टेयर, कपास फसल का रकबा 37900 हेक्टेयर, दलहन फसलों का रकबा 9500 हेक्टेयर तथा सोयाबीन फसल का रकबा 14000 हेक्टेयर है एवं उद्यानिकी फसलों में केला फसल का रकबा 24000 एवं हल्दी एवं अन्य मसाला फसले 4000 हेक्टेयर है। रबी फसलों में गेंहू फसल का रकबा 22800 हेक्टेयर, मक्का 12000 हेक्टेयर चना 21000 हेक्टेयर एवं गन्ना 4900 हेक्टेयर है। श्रीमती चिटनिस ने बताया कि बुरहानपुर जिले में सभी फसलों में एक वर्ष में 70 हजार मेट्रिक टन उर्वरक उपयोग हो रहा किसकी कुल कीमत 120करोड़ है,और जिसमे शासन की सब्सिडी अलग है, इसी प्रकार पेस्टीसाइड लगभग 2 लाख लीटर उपयोग हो रहा है जो 15 करोड़ रूपए की लागत का होता है।
सोमवार को प्राकृतिक आधारित खेती पर रामकृष्ण ट्रस्ट कच्छ भुंज के निदेशक मनोज पुरूषोत्तम सोलंकी, प्राकृतिक खेती का अनुभव विषय पर इनोवेटिव कृषक उज्जैन अष्विनी सिंह चौहान, प्राकृतिक खेती विषय पर सूक्ष्म जीव विज्ञान, चौधरी चरण सिंह कृषि विष्वविघालय, हिसार के प्राध्यापक डॉ.बलजीत सिंह सारण तथा सब्जियों की खेती मे प्राकृतिक खेती का महत्व विषय पर गुरूकुल कुरूक्षेत्र हरियाणा के स्टेट ट्रेनर नेचरल फार्ममिंग के डॉ.हरिओम, खेती में प्राकृतिक अदानो का महत्व विषय पर राष्ट्रपति कृषि कर्मड अवार्ड प्राप्त उज्जैन के कृषक डॉ.योगेन्द्र कौषिक ने किसानों को प्रशिक्षण देकर अपने-अपने विचार रखें। साथ ही सभी विशेषज्ञयों ने किसानों से संवाद भी किया।

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