गेहूं और चने की फसल अब पककर तैयार होने लगी है।
चने के दाने एवम गेहूं की बाली पंछी यो को लुभाने लगी है।
मार्च की दोपहरी भी अब तपतपाने लगी है।
खेतो की पगडंडियो पर मजदूरों की कतारे अब आने जाने लगीं हैं।।1।।
खेतो में बनी घास फूस की झोपड़ियों में सुबह शाम चूल्हे की आग अब जलने लगी है।
दाल ,रोटी ,सब्जी की खुशबू मेहनतकश मजदूरों के आशियानो से आने लगीं हैं।
कडी धूप मे मिट्टी के मैदान से नन्हे मुन्ने बच्चो के कभी हंसने तो कभी रोने की आवाजे अब आने लगी है।
खेतो की पगडंडियो पर मजदूरों की कतारे अब आने जाने लगीं हैं।।2।।
सूर्य उदय होते ही खेत पर जाने की तैयारी अब होने लगी है।
मेले में जाकर पत्नी को रंग बिरंगी साड़ी, तो बच्चो को मन पसंद खिलौने देने की आस जगने लगी है।
होली पर घर जाकर एक दूसरे को रंग लगाने की उम्मीद अब रंग लाने लगी है।
खेतो की पगडंडियो पर मजदूरों की कतारें अब आने जाने लगीं हैं।।3।।
परदेश आए हुए मजदूरों को अपने गांव की याद अब आने लगी है।
बूढ़ी मां का प्यार , तो बूढ़े पिता की डांट यादों में रुलाने लगी है।
चांदनी रात में झोपड़ियों में दियो की मंद रोशनी में रंगीन रातें भी मधुर गीत गाने लगीं हैं।
खेतो की पगडंडियो पर मजदूरों की कतारें अब आने जाने लगीं हैं।।4।।
विजय गावंडे
कवि, शिक्षक, पत्र लेखक, शाहपुर