मालवी और निमाड़ी मध्य प्रदेश की सशक्त लोक भाषा है। भाव ,भाषा , अलंकार की दृष्टि से इनका साहित्य अत्यंत ही समृद्ध रहा है । मालवी यदि शकुंतला की तरह सौंदर्य की बोली है तो निमाड़ी बोली ने सीता की तरह अरण्य वन में अपनी राह बनाई है। इसमें नर्मदा की तेजस्विता और विंध्य सतपुड़ा की दृढ़ता है। मालवा निमाड़ को सांस्कृतिक व्यक्तित्व प्रदान करने का श्रेय भी इन्हीं बोलियों को ही जाता है। यह गर्व की बात है की बोली भाषा में गद्य एवं पद्य की रचना करने वाले सृजनशील साहित्यकारों की कमी नहीं है ।
इन बोलियों को बचाना है तो नवीन पीढ़ी के बच्चों को बोलना सिखाना होगा। यह बात मालवी भाषा की जानी-मानी साहित्यकार अंतर्राष्ट्रीय साहित्य सेतु सम्मान से पुरस्कृत सुश्री हेमलता शर्मा भोली बेन ने मेडिकेप्स के प्रोफेसरों से चर्चा में कही । प्रोफेसर डॉक्टर अनीशा जैन, डॉ प्राची साठ और डॉ शालिनी मोड के साथ एम ए द्वितीय वर्ष की छात्रा ऋत्वि रावल मालवी निमाड़ी बोली उत्थान प्रोजेक्ट के तहत भोली बेन से भेंट करने पहुंचे और भोली बेन को मालवी उत्थान हेतु मोमेंटो देकर सम्मानित किया।
प्रोजेक्ट की हेड डॉ प्राची साठ ने बताया कि विगत वर्ष से मेडिकैप्स विश्वविद्यालय के भाषा विभाग ने मालवा और निमाड़ जनपदीय बोलियों के ऐतिहासिक और समकालीन अध्ययन का बीड़ा उठाया है । मेडिकैप्स में निमाड़ी और मालवी साहित्य का एक व्यवस्थित साहित्य संकलन स्थापित किया जा सके जहां सभी मालवी निमाड़ी भाषियों को अपनी मातृभाषा और जनपदीय भाषा का साहित्य सुलभता से उपलब्ध हो सके। बोली भाषा को संजोने में मेडिकैप्स विश्वविद्यालय इन्दौर के भाषा विभाग कार्यरत है।