नवरात्र का प्रथम दिन, नवदुर्गा पूजा की सारी तैयारियां हो चुकी है, तभी द्वार से आवाज आई – “तीन दिनो से कुछ नहीं खाया बेटा, इस, वृद्धा को कुछ मिलेगा।” मैंने आकर देखा तो गंदे कपड़े में लिपटी एक दीन-हीन वृद्ध बुढ़िया द्वार पर बैठी थी, बाल भी बिखरे हुए थे, देखकर ही मन में हिकारत का भाव भर आया। मन ही मन सोचा ” अरे आज नवरात्र का प्रथम दिन, पूजा का समय , मां को भोग भी नहीं लगा और यह बुढ़िया सुबह-सुबह मांगने चली आई। मन दुत्कारने को ही था कि मेरा 6 वर्षीय बेटा हाथ में मां के भोग का थाल उठाकर ले आया और उस वृद्धा भिखारिन के समक्ष रखकर अपने नन्हें हाथों से लड्डू उठाकर वृद्धा को देते हुए बोला -“लो दादी मां, ये लड्डू खालो, आपको भूख लगी है ना, आपके बच्चों ने आपको घर से निकाल दिया है ना ।” पहले तो भूख से व्याकुल वृद्धा ने ताबड़तोड़ लड्डू खाएं और फिर उसकी आंखों से अविरल अश्रुधारा फूट पड़ी । यह सब देख कर मेरा मन व्याकुल हो उठा। मैं वृद्धा को सहारा देकर भीतर ले आई और बिना कोई विचार किए उसे खाने का थाल परोस कर दिया। मन में बेटे के शब्द गूंज रहे थे-” आपके बच्चों ने आपको घर से निकाल दिया है ना।” तभी नजर घर में विराजित मां दूर्गा की मूर्ति पर पड़ी, पूजा में देरी के लिए अपने आप हाथ उठ गए, प्रतीत हुआ मानो मां का मुखमंडल पर एक असीम तृप्ति और प्रसन्नता से दमक रहा था। लगा ‘नवरात्र’ सफल हो गया।
स्वरचित
हेमलता शर्मा भोली बेन
इंदौर मध्यप्रदेश