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Friday, Oct 18, 2024
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मध्यप्रदेश के 4 जिलों से होकर 3 राज्यों 12 जिलों से गुजरने वाली सूर्य पुत्री ताप्ती नदी की उत्पत्तिऋ महत्व, इसके महात्म्य पर एक संगीतमय नाटिका होगा सुलेखन और निर्माण-अर्चना चिटनिस


बुरहानपुर। पुण्य सलिला मां ताप्ती केवल एक नदी नहीं है। ये हमारी जीवन दायिनी, प्राण दायिनी और अपने क्षेत्र को समृद्ध बनाने वाली जीवन दात्री मां है। जिसके कछार में केवल मानव सभ्यता और संस्कृति का विकास ही नहीं हुआ बल्कि सतपुड़ा की तराई में मां ताप्ती ने हमको जीवन जीने की शैली और पद्दत दी है। बुरहानपुर सहित मध्यप्रदेश के 4 जिलों से होकर 3 राज्यों 12 जिलों से गुजरने वाली सूर्य पुत्री ताप्ती नदी की उत्पत्तिऋ महत्व, इसके महात्म्य पर एक संगीतमय नाटिका के सुलेखन और निर्माण करने हेतु पूर्व मंत्री एवं विधायक श्रीमती अर्चना चिटनिस (दीदी) ने अमृतस्य नर्मदाः नृत्य नाटिका की निर्देशन डॉ.सुचित्रा हरमलकर से चर्चा कर अपने विचार प्रकट किए।


श्रीमती अर्चना चिटनिस ने बताया कि बुरहानपुर के परम पूज्य पंडित लोकेश जी शुक्ला का पूर्ण सहयोग हेतु चर्चा हुई है। उन्होंने भी उनके द्वारा मां ताप्ती के संबंध में किए गए शोध व एकत्रित की गई जानकारियां इस सुलेखन और निर्माण के लिए उपलब्ध कराएंगे। श्रीमती चिटनिस ने कहा कि संगीतमय नाटिका के सुलेखन और निर्माण करने हेतु मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ.मोहन यादव जी एवं संस्कृति विभाग से फंडिंग की व्यवस्था व सहयोग लिया जाएगा। संस्कृत बोर्ड के पूर्व अध्यक्ष डॉ.मिथिलाप्रसाद त्रिपाठी द्वारा रचित संस्कृत नाटिका ‘‘ताप्ती संवरनम‘‘ का हिन्दी अनुवाद स्क्रिप रायटर के साथ किया जाएगा। डॉ.सुचित्रा हरमलकर से चर्चा के दौरान श्रीमती चिटनिस ने उन्हें म्यूजिक डायरेक्टर तलाशने की बात कही। ‘‘पौराणिक ब्रघ्नपुर-आज का बुरहानपुर‘‘ के लेखक बलराज नावानी ने भी अपनी पुरी सहभागिता के लिए आश्वस्त किया।


श्रीमती चिटनिस ने कहा कि पवित्र नदियों में से एक है ताप्ती नदी, इस नदी का इतिहास भी अन्य नदियों की तरह काफी पुराना है। नर्मदा के अलावा सिर्फ ये एक ऐसी नदी है जो अपनी उल्टी दिशा में बहती है। ताप्ती नदी, जिसे तापी के नाम से भी जाना जाता है, मध्य भारत में गोदावरी और नर्मदा नदियों के बीच एक मध्यस्थ नदी के रूप में निकलती है।
तापी नदी का इतिहास और धार्मिक तथ्य
तापी नदी का उद्गम बैतूल जिले से मुलताई नामक स्थान से होता है। मुलताई शब्द संस्कृत के शब्दों का एक समामेलन है जिसका अर्थ है ‘‘तापी माता की उत्पत्ति‘‘। ताप्ती नदी की कुल लंबाई लगभग 724 किलोमीटर है और यह 30,000 वर्ग के क्षेत्र में बहती है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार, तापी नाम, भगवान सूर्य और देवी छाया की बेटी, देवी तापी के शब्द से लिया गया है। तापी नदी का इतिहास उन स्थानों के इतिहास से गहराई से जुड़ा हुआ है जहां से होकर यह बहती है। पश्चिमी भारत की नदी मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के मुलताई से अपना उद्गम शुरू करती है और फिर सतपुड़ा पहाडि़यों के बीच, खानदेश के पठार के पार, सूरत के मैदानों के बाद और अंत में अरब सागर में विलीन हो जाती है।
पुण्य सलिला मां ताप्ती के उदगम के रूप में प्रसिद्ध है। यहां दूर-दूर से लोग दर्शनों के लिए आते है। यहां सुंदर मंदिर है। ताप्ती नदी की महिमा की जानकारी स्कंद पुराण में मिलती है। स्कंद पुराण के अंतर्गत ताप्ती महान्त्म्य का वर्णन है। धार्मिक मान्यता के अनुसार माँ ताप्ती सूर्यपुत्री और शनि की बहन के रुप में जानी जाती है। यही कारण है कि जो लोग शनि से परेशान होते है उन्हें ताप्ती में स्नान करनेे से राहत मिलती है। ताप्ती सभी की ताप कष्ट हर उसे जीवन दायनी शक्ति प्रदान करती है श्रद्धा से इसे ताप्ती गंगा भी कहते है। म.प्र. की दूसरी प्रमुख नदी है। इस नदी का धार्मिक ही नहीं आर्थिक सामाजिक महत्व भी है। सदियों से अनेक सभ्यताएं यहां पनपी और विकसित हुई है। यह नदी पूर्व से पश्चिम की ओर बहती है इस नदी के किनारे बुरहानपुर और सूरत जैसे नगर बसे है। ताप्ती अरब सागर में खम्बात की खाड़ी में गिरती है। मां ताप्ती बुरहानपुर जिले की जीवन रेखा है।


ताप्ती के सात कुण्ड
ताप्ती नदी के मूलस्थान मुल्तापी में एवं उसके सीमावर्ती क्षेत्र में सात कुण्ड अलग-अलग नामों से बने हुए हैं और उनके बारे में विभिन्न कहानियां प्रचलित है। सूर्यकुण्ड- यहां भगवान सूर्य ने स्वंय स्नान किया था। ताप्ती कुण्ड- सूर्य के तेज प्रकोप से पशु पक्षी नर किन्नर देव दानव आदि की रक्षा करने हेतु ताप्ती माता की पसीने के तीन बूंदें के रूप में आकाश धरती और फिर पाताल पहुंची। तवही एक बूंद इस कुण्ड में पहुंची और बहती हुई आगे नदी रूप बन गई। धर्म कुण्ड-यहां यमराज या धर्मराज ने स्वंय स्नान किया जिस कारण से यह धर्म कुण्ड कहलाता है। पाप कुण्ड-पाप कुण्ड में सच्चे मन से पापी व्यक्ति सूर्यपुत्री का ध्यान करके स्नान करता है तो उसके पाप यहां पर धुल जाते है। नारद कुण्ड-यहां पर देवर्षि नारद ने श्राप रूप में हुए कोढ के रोग से मुक्ति पाई थी एवं बारह वर्षो तक मां ताप्ती की तपस्या करके उनसे वर मांगा था। उसी से उन्हें पुराण की चोरी के कारण कोढ़ के श्राप से मुक्ति मिल पाई। शनि कुण्ड-शनिदेव अपनी बहन ताप्ती के घर पर आने पर इसी कुण्ड में स्नान करने के बाद उनसे मिलने गए थे। इस कुण्ड में स्नान करके मनुष्य को शनिदशा से लाभ मिलता है। नागा बाबा कुण्ड-यह नागा सम्प्रदाय के नागा बाबाओं का कुण्ड है जिन्होने यहां के तट पर कठोर तपस्या करके भगवान शिव को प्रसन्न किया था। इस कुण्ड के पास सफेद जनेउ धारी शिवलिंग भी है।

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