: दुर्लभ योग में करवा चौथ आज, सुहागिनें रखेंगी इतने घंटे का व्रत, जानें मुहूर्त, चांद दिखने का समय, पूजा विधि सहित अन्य जानकारी

महेश मावले
Fri, Oct 10, 2025
आज शुक्रवार 10 अक्तूबर को सुहागिनों को महापर्व करवा चौथ मनाया जाएगा। इस व्रत में सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की मनोकामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। आइए जानते हैं करवा चौथ पूजा का शुभ मुहूर्त, विधि और महत्व के बारे में।
अक्तूबर को सुहागिनों को महापर्व करवा चौथ मनाया जाएगा। हिंदू धर्म में करवा चौथ व्रत का विशेष महत्व होता है। इस व्रत में सुहागिन महिलाएं पति की लंबी आयु, सुख-समृद्धि और अच्छे स्वास्थ्य की मनोकामना के लिए निर्जला व्रत रखती हैं। हिंदू पंचांग के अनुसार करवा चौथ का व्रत हर साल कार्तिक माह के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को मनाया जाता है। इस दिन सुहागिन महिलाएं सुबह से बिना कुछ खाए पीये व्रत रखती हैं और शाम को करवा चौथ की पूजा और कथा सुनने के बाद चंद्रोदय के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत पूरा करती हैं। करवा चौथ का व्रत प्रमुख रूप से दिल्ली, उत्तर प्रदेश, पंजाब , हरियाणा, उत्तराखंड और राजस्थान में बड़े ही धूम-धाम के साथ मनाया जाता है। करवा चौथ व्रत में सुगागिन महिलाएं 16 श्रृंगार करते हुए छलनी से चांद को देखती है फिर पति के हाथों के जल ग्रहण कर व्रत का पारण करती हैं।

करवा चौथ तिथि 2025
पंचांग के मुताबिक चतुर्थी तिथि का प्रारंभ 9 अक्तूबर को देर रात 10 बजकर 54 मिनट पर हो रहा है। इस तिथि का समापन अगले दिन 10 अक्तूबर को शाम 07:38 मिनट पर होगा। ऐसे में 10 अक्तूबर को करवा चौथ का व्रत मान्य होगा।
करवा चौथ पर शुभ योग
करवा चौथ पर कृत्तिका नक्षत्र बना रहेगा, जो शाम 5 बजकर 31 मिनट तक है। इसके अलावा सिद्ध योग का संयोग है, जो शाम 5:41 मिनट तक है। इसके बाद व्यतीपात योग प्रारंभ होगा। इस दिन चन्द्रमा वृषभ राशि में रहेंगे। इस दिन राहुकाल सुबह 10 बजकर 40 मिनट से दोपहर 12:07 मिनट तक रहेगा। हालांकि, दिन का सबसे शुभ अभिजीत मुहूर्त सुबह 11 बजकर 44 मिनट से दोपहर 12:30 तक रहने वाला है।
*करवा चौथ पूजन शुभ मुहूर्त*
शाम 05:57 मिनट से शाम 07:11 मिनट तक
पूजन अवधि- 1 घंटा 14 मिनट
करवा चौथ व्रत समय- सुबह 06:19 मिनट से शाम 08: 13 मिनट तक
करवा चौथ व्रत अवधि- 13 घंटे 54 मिनट
*करवा चौथ महत्व*
पंचांग के मुताबिक कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि पर करवा चौथ मनाया जाता है। इस दिन सुहागिनें पति की लंबी उम्र, वैवाहिक जीवन सुखमय और रिश्तों में प्रेम संचार के लिए निर्जला उपवास रखती हैं। व्रत का पारण चंद्रोदय के बाद किया जाता है। चूंकि व्रत निर्जला होता है, इसलिए खान-पान से लेकर पानी पीने तक की भी मनाही होती हैं। हिंदू धर्म में इस पर्व को पति-पत्नी के प्यार और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यदि करवा चौथ पर सच्चे भाव से कथा का पाठ और कुछ उपाय किए जाए, तो सभी इच्छाएं पूरी होती हैं। साथ ही पति की तरक्की के योग का निर्माण भी होता है। भारत में हर साल इस त्योहार को भव्य आयोजन के रूप में मनाया जाता है। यही नहीं महिलाएं करवा चौथ की तैयारी लगभग महीने भर पहले से शुरू कर देती हैं।
: *करवा चौथ व्रत कल, जानिए इस दिन चंद्र पूजन क्यों है जरूरी, क्यों देखा जाता है छलनी से चांद ?*
*पूजा विधि*
करवा चौथ के दिन ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान कर लें और उसके बाद सरगी ग्रहण करें।
इसके बाद पूजा मुहूर्त के समय एक साफ चौकी पर करवा माता की तस्वीर रखें।
फिर एक साफ थाली लेकर उसमें सिंदूर, दीपक, गंगाजल, अक्षत और हल्दी रखें।
इस दौरान आप थाली में फूल और गुड़ भी अवश्य रखें।
अब चौकी के पास एक नए कलश में साफ जल भरकर उसे रख दें।
अब दीप प्रज्ज्वलित करें और धूपबत्ती जला लें।
माता करवा को फल, हल्दी, अक्षत और ताजे फूल अर्पित करें।
इसके बाद करवा चौथ के व्रत की कथा सुनें और सभी बड़ों से आशीर्वाद लें।
अब चंद्रमा के निकलते ही उसे जल अर्पित करें।
इसके बाद साफ नई छलनी के माध्यम से चंद्रमा देखें और फिर उसी से पति की ओर देखें।
फिर आप पति के हाथों से व्रत का पहला जल ग्रहण करें और उनका आशीर्वाद लें।
इसके बाद सुहागिन महिलाओं को कुछ वस्त्र व अन्न दान करें और उनका आशीर्वाद लें।
अंत में व्रत का पारण करते हुए जाने अनजाने में हुई गलतियों की क्षमा मांगें।
: *सरगी थाली में क्या होना चाहिए? जानिए इसकी परंपरा और महत्व*

*करवा चौथ व्रत के नियम*
करवा चौथ के दिन सूर्योदय से पहले ही सरगी ग्रहण करनी चाहिए।
व्रत में भूलकर भी काले रंग के वस्त्र व इस रंग की चीजों का उपयोग भी न करें।
करवा चौथ के व्रत की कथा 16 श्रृंगार और लाल जोड़े में सुननी चाहिए।
चंद्रमा देखने के बाद ही व्रत का पारण करें।
मन को शांत रखें और किसी भी तरह का नकारात्मक भाव मन में न रखें।
संध्या के समय पूजा अवश्य करें।
इस दिन तामसिक चीजों का सेवन करें।
चंद्रमा को अर्घ्य दें और सुहागिनों को क्षमतानुसार चीजें दान करें।
निर्जला उपवास रखें
सरगी खाने का समय ?
धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक करवा चौथ पर सरगी हमेशा ब्रह्म मुहूर्त में ग्रहण की जाती है। ऐसे में करवा चौथ के दिन यानी 10 अक्तूबर को ब्रह्म मुहूर्त सुबह लगभग 4 बजकर 35 मिनट से 5 बजकर 23 मिनट के बीच तक रहेगा। ऐसे में आप इस अवधि में सरगी खा सकती हैं।
*क्या है सरगी का धार्मिक महत्व?*
करवा चौथ के व्रत की शुरुआत जिस परंपरा से होती है, वह है सरगी। इसका मुख्य उद्देश्य शारीरिक ऊर्जा प्रदान करना है, लेकिन इससे कहीं अधिक इसका सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व भी है। यह सरगी सास द्वारा बहू को दी जाती है, जो आशीर्वाद और स्नेह का प्रतीक मानी जाती है। इसे ब्रह्ममुहूर्त या सूर्योदय से पहले खाया जाता है, जिससे व्रती महिला दिनभर बिना जल और अन्न के उपवास रख सके।
धार्मिक दृष्टि से सरगी सिर्फ ऊर्जा देने वाला भोजन नहीं, बल्कि यह पति की लंबी उम्र, घर में सुख-शांति और सास-बहू के रिश्ते में प्रेम और विश्वास की डोर को मजबूत करने वाली परंपरा है। यह यह भी दर्शाता है कि कैसे हमारी परंपराएं केवल आस्था से जुड़ी नहीं, बल्कि स्वास्थ्य और संबंधों की बुनियाद को भी मज़बूत करती हैं।
*कैसे शुरू हुई सरगी की परंपरा?:*
सरगी की शुरुआत को लेकर दो प्रमुख कथाएं प्रचलित हैं, जो इसके धार्मिक महत्व को दर्शाती हैं। पहली कथा माता पार्वती से जुड़ी है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, जब माता पार्वती ने भगवान शिव की दीर्घायु और कल्याण के लिए पहली बार करवा चौथ का व्रत रखा था, तब उनकी सास जीवित नहीं थीं। ऐसे में उनकी मां मैना देवी ने उन्हें व्रत से पहले सरगी दी थी एक विशेष थाली जिसमें पौष्टिक और शुभ खाद्य पदार्थ थे। तभी से यह परंपरा बनी कि यदि सास जीवित न हों, तो मायके से मां भी सरगी भेज सकती हैं।
दूसरी कथा महाभारत काल से जुड़ी है। कहा जाता है कि जब द्रौपदी ने पांडवों की रक्षा और दीर्घायु के लिए करवा चौथ का व्रत रखा था, तब उनकी सास कुंती ने उन्हें सरगी दी थी। इस प्रसंग से यह मान्यता और भी प्रबल हो गई कि सरगी ससुराल पक्ष की ओर से दी जानी चाहिए। खासकर सास की ओर से, जो इसे आशीर्वाद और प्रेम के रूप में अपनी बहू को देती है।
*किन महिलाओं को नहीं रखना चाहिए करवा चौथ का व्रत?*
गर्भवती महिलाओं को करवा चौथ का निर्जला व्रत नहीं रखना चाहिए
नवजात शिशु को दूध पिलाने वाली माताओं को भी यह व्रत नहीं रखना चाहिए।
जो महिलाएं किसी गंभीर शारीरिक या मानसिक बीमारी से पीड़ित हैं, उन्हें यह व्रत नहीं रखना चाहिए।
मासिक धर्म के दौरान करवा चौथ का व्रत रखना उचित नहीं है, हालांकि मन से प्रार्थना कर सकते हैं।
*चन्द्रमा की पूजा क्यों है ज़रूरी*
पुराणों में उल्लेख है कि सुख-सौभाग्य,उत्तम संतान,धन-धान्य,पति की रक्षा के लिए चंद्रदेव की उपासना अच्छी मानी गई है। चंद्रमा की पूजा का एक अन्य कारण यह भी है कि चंद्रमा मन के देवता हैं। चंद्रमा की अमृतमयी किरणें मनुष्य के मन पर सर्वाधिक प्रभाव डालती हैं।
सरगी में शामिल व्यंजन
सरगी में ऐसे व्यंजन शामिल किए जाते हैं जो न केवल स्वादिष्ट होते हैं, बल्कि शरीर को पूरे दिन के उपवास के लिए ज़रूरी पोषण और ऊर्जा भी प्रदान करते हैं। आमतौर पर इसमें मिठाइयां, जैसे रसगुल्ले, लड्डू या बर्फी, सेवईं, मठरी, सूखे मेवे (बादाम, काजू, किशमिश), फ्रूट्स (जैसे केला, सेब, अनार) और कभी-कभी हल्का नमकीन या सैंडविच भी शामिल किया जाता है।
हर घर की सरगी थाली थोड़ी अलग हो सकती है, लेकिन उसमें यह ध्यान रखा जाता है कि भोजन संतुलित हो न ज़्यादा भारी, न बहुत हल्का। कुछ महिलाएं अपनी पसंद के अनुसार चाय या दूध भी लेती हैं। सरगी केवल एक प्रथा नहीं, बल्कि यह भारतीय व्यंजन परंपरा और पारिवारिक मूल्यों का सम्मिलन है, जो इस पर्व को और भी खास बनाता है।
*करवा चौथ की पूजा सामग्री*
नई छलनी, रूई की बाती, सींक, कपूर, अगरबत्ती।
गेहूं, अक्षत्, एक लकड़ी की साफ नई चौकी।
करवा चौथ व्रत कथा की किताब, लोटा, कुछ पैसे।
लाल चुनरी, सोलह श्रृंगार का सामान, नया कलश।
दीपक, करवा माता और भगवान गणेश की तस्वीर।
शक्कर, शहद, चंदन, फूल, पान का पत्ता।
घी, रोली, कुमकुम, मौली या कलावा, मिठाई।
आरती की एक पुस्तक, फूल माला, कुछ फूल।
हल्दी, पूजन के लिए नए वस्त्र, भगवानों के लिए वस्त्र।
मिट्टी का करवा, कच्चा दूध, दही, दान की सामग्री।
एक मिट्टी का ढक्कन, साफ एक थाली।
*करवा चौथ दान सामग्री*
आप करवा चौथ के लिए वस्त्रों का दान भी कर सकती हैं। इसके अलावा महिलाएं लाल रंग की चुनरी या इत्र दान कर सकती है। यह शुभ होता है। हालांकि, अपनी क्षमतानुसार धन और अन्न को दान करना भी लाभकारी होता है। इसके प्रभाव से वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है।
*करवा चौथ पर अर्घ्य देने का मंत्र*
करवा चौथ के दिन रात्रि 8 बजकर 13 मिनट पर चन्द्रमा उदित होंगे। उस समय पहले चन्द्रमा की पूजा की आएगी और इसके बाद अर्घ्य दिया जाएगा।
चंद्रमा को अर्घ्य देते समय नीचे दिए मंत्रो का उच्चारण करें-
गगनार्णवमाणिक्य चन्द्र दाक्षायणीपते।
गृहाणार्घ्यं मया दत्तं गणेशप्रतिरूपक॥
अगर चंद्रमा दिखाई न दे तो क्या करें?
अगर करवा चौथ की रात चंद्रमा बादलों या किसी वजह से नजर न आए, तो आप नजदीकी शिव मंदिर जाकर भगवान शिव के माथे पर सजाए गए चंद्रमा को अर्घ्य दे सकती हैं।
चंद्र उदय के बाद चांदी का सिक्का या चांदी का कोई गोल टुकड़ा चंद्रमा के प्रतीक के रूप में रखकर उसे अर्पित करें।
छलनी से चांद देखने की परंपरा
एक प्रचलित कथा के अनुसार पूर्वकाल में वीरवती नाम की पतिव्रता स्त्री ने यह व्रत किया। भूख से व्याकुल वीरवती की हालत उसके भाइयों से सहन नहीं हुई,अतः उन्होंने चंद्रोदय से पूर्व ही एक पेड़ की ओट में छलनी लगाकर उसके पीछे अग्नि जला दी,और प्यारी बहन से आकर कहा-'देखो चाँद निकल आया है अर्घ्य दे दो ।' बहन ने झूठा चाँद देखकर व्रत खोल लिया जिसके कारण उसके पति की मृत्यु हो गई । पतिव्रता वीरवती ने अपने प्रेम और विश्वास से मृत पति को सुरक्षित रखा। उसने पूरे साल की चतुर्थी का व्रत का रखते हुए अगले वर्ष करवाचौथ के ही दिन नियमपूर्वक व्रत का पालन किया, जिससे चौथ माता ने प्रसन्न होकर उसके पति को जीवनदान दे दिया। मान्यता है कि तब से छलनी में से चाँद को देखने की परंपरा आज तक चली आ रही है।
*शुभ मुहूर्त और चंद्रोदय का समय*
करवा चौथ पर पूजा का शुभ समय शाम 5 बजकर 57 मिनट से प्रारंभ होकर 7 बजकर 11 मिनट तक बना रहेगा। वहीं चंद्रोदय का समय शाम 07 बजकर 42 मिनट पर माना जा रहा है।
*राशि अनुसार करवा चौथ पर क्या दान करें?*
मेष राशि- इस राशि की महिलाओं को लाल वस्त्र या लाल रुमाल का दान करना चाहिए। इससे मंगल ग्रह मजबूत होता है और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।
वृषभ राशि- वृषभ राशि की जातिकाएं गुलाबी चूड़ियों का दान करें। यह दान शुक्र ग्रह को प्रसन्न करता है और वैवाहिक जीवन में प्रेम और सौहार्द लाता है।
मिथुन राशि- मिथुन राशि की महिलाओं के लिए मेहंदी का दान करना मंगलकारी होता है। यह दान रिश्तों में मिठास और स्थायित्व बढ़ाता है।
कर्क राशि- कर्क राशि की महिलाएं इस दिन मंदिर में सिंदूर का दान करें। इससे वैवाहिक जीवन में स्थिरता और शांति बनी रहती है।
सिंह राशि- इस राशि की महिलाओं को पायल का दान करना चाहिए। यह सूर्य ग्रह की कृपा दिलाता है और आत्मविश्वास बढ़ाता है।
कन्या राशि- कन्या राशि की जातिकाओं को फूलों का दान करना चाहिए। इससे बुध ग्रह की कृपा मिलती है और मन में सकारात्मक ऊर्जा आती है।
तुला राशि- तुला राशि की महिलाओं के लिए आलता का दान शुभ रहता है। यह शुक्र ग्रह को संतुलित रखता है और जीवन में सौंदर्य एवं आकर्षण बढ़ाता है।
वृश्चिक राशि- वृश्चिक राशि की महिलाएं लाल चुनरी का दान करें। यह दान शक्ति और सौभाग्य में वृद्धि करता है।
धनु राशि- इस राशि की महिलाओं को पीली साड़ी का दान करना चाहिए, जो बृहस्पति ग्रह को प्रसन्न करता है और जीवन में सुख-संपन्नता लाता है।
मकर राशि- मकर राशि की जातिकाएं काजल का दान करें। यह शनि ग्रह को संतुष्ट करता है और नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है।
कुंभ राशि- कुंभ राशि की महिलाओं को वस्त्र दान करना चाहिए। यह दान सामाजिक सम्मान और मानसिक शांति प्रदान करता है।
मीन राशि- मीन राशि की महिलाओं के लिए मेकअप सामग्री का दान शुभ माना गया है। इससे आकर्षण और सौभाग्य दोनों बढ़ते हैं।
करवा चौथ की शुरुआत कैसे हुई?
करवा चौथ की परंपरा देवताओं के समय से चली आ रही है। पौराणिक कथाओं के अनुसार एक बार देवताओं और दानवों में युद्ध शुरू हो गया और उस युद्ध में देवताओं की हार होने लगी। भयभीत देवता ब्रह्मदेव के पास गए और उनसे रक्षा की प्रार्थना की। ब्रह्मदेव ने कहा कि इस संकट से बचने के लिए सभी देवताओं की पत्नियों को अपने-अपने पतियों के लिए व्रत रखना चाहिए और सच्चे दिल से उनकी विजय की कामना करनी चाहिए। ब्रह्मदेव ने यह वचन दिया कि ऐसा करने पर इस युद्ध में देवताओं की जीत निश्चित हो जाएगी। ब्रह्मदेव के इस सुझाव को सभी ने स्वीकार किया।
ब्रह्मदेव के कहे अनुसार कार्तिक माह की चतुर्थी के दिन सभी देवताओं की पत्नियों ने व्रत रखा और अपने पतियों की विजय के लिए प्रार्थना की। उनकी यह प्रार्थना स्वीकार हुई और युद्ध में देवताओं की जीत हुई। इस खुशखबरी को सुन कर सभी देव पत्नियों ने अपना व्रत खोला और खाना खाया। उस समय आकाश में चांद भी निकल आया था। माना जाता है कि इसी दिन से करवा चौथ के व्रत के परंपरा शुरू हुई।
करवा चौथ की परंपराएं
सोलह श्रृंगार: करवा चौथ के दिन महिलाएं सोलह श्रृंगार करती हैं, जिनमें मेहंदी, चूड़ियाँ, सिंदूर, बिंदी, और सुंदर पोशाक शामिल हैं। यह श्रृंगार उनकी नारीत्व और वैवाहिक जीवन की खुशहाली का प्रतीक होता है।
करवा चौथ कथा: व्रत के दौरान महिलाएं करवा चौथ की कथा सुनती हैं, जिसमें नारी शक्ति और प्रेम की प्रेरणादायक कहानियाँ होती हैं। यह कथा व्रत की पवित्रता और महत्व को समझने में मदद करती है।
चंद्रमा को अर्घ्य देना: संध्या के समय चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद महिलाएं अपने पति के हाथ से जल ग्रहण कर व्रत का पारण करती हैं।
करवा चौथ पूजा विधि
करवा चौथ पर्व के दिन महिलाओं को सुबह जल्दी स्नान कर नए वस्त्र धारण करने चाहिए। इसके बाद करवा चौथ व्रत का संकल्प लें।
व्रत का संकल्प लेने के बाद इस मंत्र का जाप करें - ''मम सुखसौभाग्य पुत्रपौत्रादि सुस्थिर श्री प्राप्तये कर्क चतुर्थी व्रतमहं करिष्ये''
शाम को करवा में जल लेकर व्रत की करवा चौथ कथा पढ़ें या सुनें।
पूजा करते समय मां पार्वती को श्रृंगार की वस्तुएं अर्पित करें और उन्हें वस्त्र पहनाएं।
भगवान शिव और देवी पार्वती से अपने सुखी और लंबे वैवाहिक जीवन के लिए प्रार्थना करें।
चंद्रोदय के बाद चंद्रमा की पूजा करें और उन्हें अर्घ्य दें।
चन्द्र देव पूजा की समाप्त होने के बाद आप अपना व्रत तोड़ सकती हैं और अपने पति के हाथों से पानी पी सकती हैं।
अपने बड़ों का आशीर्वाद लेने के लिए उनके पैर छूएं।
क्यों होती है चंद्रमा की पूजा?
चंद्रमा को आयु, सुख और शांति का कारक माना जाता है और इनकी पूजा से वैवाहिक जीवन सुखमय बनता है और पति की आयु भी लंबी होती है। इसलिए करवा चौथ का व्रत सुहागन महिलाएं अखंड सौभाग्य की प्राप्ति के लिए करती हैं।
'करवा चौथ' का अर्थ
करवा चौथ का नाम ही अपने रहस्य को समेटे हुए है। “करवा” एक मिट्टी का विशेष बर्तन होता है। प्राचीन काल में मिट्टी के बने बर्तन ही धार्मिक अनुष्ठानों में प्रमुखता से प्रयुक्त होते थे, क्योंकि वे प्राकृतिक और पवित्र माने जाते थे। आज भी करवा चौथ की पूजा में दो करवे बनाए जाते हैं। इन पर रक्षा सूत्र बाँधा जाता है और आटे व हल्दी से स्वस्तिक का चिन्ह अंकित किया जाता है।
पूजन में करवे का प्रयोग और उसकी मान्यता
व्रत के दिन शाम को चंद्र दर्शन से पहले स्त्रियां मिट्टी के करवे में जल भरती हैं, उसे पूजा स्थान पर रखती हैं और भगवान गणेश,शिव-पार्वती,कार्तिकेय और चौथ माता का आवाहन करती हैं। करवे के ऊपर सराई में चावल, द्रव्य और मिठाई रखकर करवा चौथ की कथा सुनी जाती है। यह करवा न केवल पूजा का पात्र है, बल्कि यह स्त्री की निष्ठा, प्रेम और संयम का प्रतीक भी बन जाता है।
करवा चौथ पूजन शुभ मुहूर्त 2025
इस वर्ष करवा चौथ पर सिद्धि और शिववास नाम का शुभ योग बना हुआ है। शास्त्रों में इस योग में पूजा करना बहुत ही शुभ माना जाता है। करवा चौथ पर सुहागिन महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखते हुए अखंड सौभाग्य की कामना के लिए करवा माता, भगवान शिव, माता पार्वती, विध्नहर्ता मंगलमूर्ति भगवान गणेश और चंद्रदेव की पूजा अर्चना करती हैं।
शाम 05:57 मिनट से शाम 07:11 मिनट तक
पूजन अवधि- 1 घंटा 14 मिनट
करवा चौथ व्रत समय- सुबह 06:19 मिनट से शाम 08: 13 मिनट तक
करवा चौथ व्रत अवधि- 13 घंटे 54 मिनट
करवा चौथ 2025 और चंद्रोदय का समय- 10 अक्तूबर
वैदिक पंचांग के अनुसार, 10 अक्तूबर चंद्रोदय का समय शाम 08 बजकर 13 मिनट पर होगा। अलग-अलग शहरों में चंद्रोदय के समय में थोड़ा बदलाव हो सकता है।

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